LOVE IN CORONA (भाग 1 )
जब से यह दुनिया बनी है मानव जीवन कभी भी सुखमय नहीं बीता ! चाहे कोई भी युग रहा हो या कोई भी काल मानव पर कोई ना कोई प्राकृतिक आपदा समय समय पर अपना प्रभाव जरूर छोड़ती है ! लेकिन हर युग में दो तरह के लोग सदा से रहे हैं, एक जो उस विपदा के होते हुए भी अपना जीवन अच्छे से जीते हैं और दुसरे वो जो विपत्ति को देख के इतना घबरा जाते हैं कि अपना जीवन तक खो देते हैं ! हमारी कहानी भी ऐसे लड़के और लड़की की है जो अलग अलग जगह दो तरह से एक प्राकृतिक आपदा CORONA से लड़ रहे हैं ! उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की ही थी कि उन्हें जीवन का वो रंग भी देखना पड़ा जिसकी उन्होंने कभी अपेक्षा नहीं की थी !
मीशा बहुत खुश थी कि उसे MBA मार्केटिंग करते ही दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में जॉब मिल गयी थी ! निम्न माध्यम वर्ग परिवार से आयी मीशा के लिए 25 हज़ार रु की नौकरी बहुत बड़ी बात थी ! उसका अपना खुद का कमरे का किराया, खाना पीना और बस किराया कुल मिलाकर 15 -16000 क्यूंकि दिल्ली जैसे शहर में यह रकम एक व्यक्ति के लिए बहुत ही मामूली थी ! हज़ार दो हज़ार और रखकर बाकी के पैसे वो घर भेज देती थी ! घर वाले भी खुश थे कि उनकी बेटी कमाने लग गयी है और उनका हाथ भी थोड़ा खुला हो गया था ! पर उसकी और उसके भाई की पढाई ने उसके पिता जी को क़र्ज़ में डुबो दिया था क्यूंकि UP के एक कस्बे (जो कि दिल्ली से काफी नजदीक था और जहाँ की मीशा थी) में उनकी किराने की दुकान थी ! चलती तो थी पर इतना ही कि उनका घर का गुजर बसर हो सके ! माँ ने भी थोड़ी बहुत बचत करके जो कुछ इकठा किया सब बच्चों की पढाई पर लगा दिया और इतने में कहाँ काम चला, उनको बैंक से क़र्ज़ तक लेना पड़ा तब कहीं जाकर मीशा की MBA पूरी हुई और उसका भाई विवेक अभी BSC कर रहा था तो उसकी पढाई में भी खूब खर्च हो रहा था ! अब कहाँ वो छोटी सी दुकान इतना निकल पाती थी कि उनके घर खर्च के इलावा उनकी पढाई लिखे का खर्च भी ढोती ! चलो किसी तरह से वक्त गुजरता गया ! अब जब मीशा कमाने लगी तो माँ को आशा थी कि अब उनके दिन फिरेंगे और वो लोग कर्जमुक्त जीवन जियेंगे ! माँ अपने घर कि हालात मीशा को बताती रहती थी ! पर बड़ा बच्चा हमेशा ही इतना समझदार होता है कि खुद ही घर कि हालात का उसे पता होता है ! मीशा को भी पता था कि पिता पर कितना क़र्ज़ है और वो जल्द से जल्द उस क़र्ज़ से उन्हें मुक्ति दिलाना चाहती थी ! उसके लिए वो बस यही कर सकती थी कि कम से कम खर्च करती ! वो तो वो पहले से ही कर रही थी !
एक साल में ही मीशा ने इतनी तरक्की कर ली कि टीम लीडर की पोस्ट तक पहुँच गयी ! काम का इतना कीड़ा था उसके अंदर कि दिन रात नहीं देखती थी ! बस कंपनी की सेल्स कैसे बढे इसी पर उसका ध्यान रहता था ! तो नयी पोस्ट कि साथ नयी सैलरी भी ! उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि उसे इस महीने से 40 हज़ार रु वेतन मिलेगा ! यह इंसान की फितरत है कि जैसे जैसे उसकी आमदनी बढ़ती रहती है, उसके खर्च उसी हिसाब से बढ़ने शुरू हो जाते हैं ! मीशा ने देखा कि उसका फ्रिज ख़राब है और उसे वाशिंग मशीन भी चाहिए ! यही सब सामन उसे अपने घर के लिए भी चाहिए था ! घर पे तो और भी बहुत सारे सामान की जरुरत थी क्यूंकि उनके खर्च की वजह से घर में कोई सामान कहाँ बना था ! TV तक उस ज़माने का था जब अभी केबल TV नहीं आया था ! तो कितना कुछ बदलने वाला था ! मीशा उन्हें हर ख़ुशी देना चाहती थी परन्तु माँ ने उसे समझाया के संभल कर चले अभी कुछ ही समय पहले उसकी नौकरी लगी है उसे ध्यान से खर्च करना चाहिए तो मीशा हमेशा जवाब देती कि माँ तुम चिंता ना करो सब कुछ आसान किश्तों पे मिल जाता है ! माँ को मीशा की बस यही बात पसंद नहीं थी! कहाँ तो वो लोग कर्ज के इस नर्क से बाहर निकलना चाहते थे और कहाँ मीशा उन्हें फिर कभी ना ख़तम होने वाले क़र्ज़ में फिर से डूबा रही थी ! उसकी अपनी और घर की कुल मिलाकर 15 -16 हज़ार की मासिक किश्तें हो गयीं थी ! फिर उसकी एक सहेली जिसने उसके साथ ही MBA किया था वो एक मशहूर INSURANCE कंपनी में काम करती थी उसका BIMA कर गयी जिसकी सालाना किश्त 35 हज़ार के करीब थी ! तो वो जो भी कमाती वो उसकी किश्तों और अपने खुद के खर्च में निकल जाता ! उसकी माँ बोलती के प्राइवेट नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता आज है कल नहीं है तू इस तरह खर्च ना बढ़ा तो वो बोलती कि माँ मुझमे इतनी क़ाबलियत है कि मैं इससे भी बढ़िया नौकरी ढूंढ सकती हूँ ! जब इंसान लगातार तरक्की कर रहा होता है तो उस वक्त उसे कभी एहसास नहीं होता कि ऐसा समय भी आ सकता है कि उसकी कमाई रुक जाये ! वो तो बस यही सोचता है कि उसका जो चल रहा है निरंतर चलते रहना है !
आपको कैसी लगी यह शुरुआत, कृपया जरूर बताएं ....क्रमशः !
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